जाने किस प्यास में
जाने किस आस में
दिल ये बरसों
सुलगता रहा
व्यर्थ की भटकन
व्यर्थ की तृष्णा
बेहताशा दौड़ता रहा
पा लूं, पा लूं, पा लूँ
पर क्या ?
जिससे क्षुधा शांत हो
ज्वर शीतल हो
मन तृप्त हो,
भटकते भटकते निढाल हो
अकर्मना बैठ गया
फिर एक पवन का झोंका
छू कर करीब से गुजर गया
महक, सुवास आने लगी
रस घुलने लगा
रोम रोम पुलकित हो उठा
वन वन भटकता हिरन
कस्तूरी की चाह में,
आखिर कर पाया
अपने ही भीतर
_/\_ atmabhaar _/\_
जाने किस आस में
दिल ये बरसों
सुलगता रहा
व्यर्थ की भटकन
व्यर्थ की तृष्णा
बेहताशा दौड़ता रहा
पा लूं, पा लूं, पा लूँ
पर क्या ?
जिससे क्षुधा शांत हो
ज्वर शीतल हो
मन तृप्त हो,
भटकते भटकते निढाल हो
अकर्मना बैठ गया
फिर एक पवन का झोंका
छू कर करीब से गुजर गया
महक, सुवास आने लगी
रस घुलने लगा
रोम रोम पुलकित हो उठा
वन वन भटकता हिरन
कस्तूरी की चाह में,
आखिर कर पाया
अपने ही भीतर
_/\_ atmabhaar _/\_
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