Sunday, August 28, 2011

जिंदगी-बहता पानी




जिंदगी हाथों से फिसलनी है,
फिसल ही जायेगी|

है जब तक....मुस्कुरा लें
झूम लें, गीत गा लें|

अच्छे-बुरे का, पाप-पुण्य का
हिसाब किताब ले क्यों बैठें?

सरलता से, सहजता से
बस, हर पल जी लें|

 पानी बहता ही अच्छा
राहें चलती ही अच्छी|

पल, पल से कदम मिला,
समय संग हम चलते रहें|

पार कर गए जो मुकाम,
पीछे  पलट कर क्यों देखें?

बाँध कर अतीत का बोझ,
सफ़र भारी क्यों करें?

पानी सागर की और ही बहता,
राहें मंजिल की तरफ ही बढती|

चलते, चलते यूं हम भी,एक दिन,
प्रभु प्रीतम को पा ही जायेंगे|

रूपांतरण




जटिल थी मैं,
सरल हो गयी हूँ|

मुश्किल थी मैं,
आसान हो गयी हूँ|

उलझी थी मैं,
सुलझ गयी हूँ|

भारी थी मैं,
हलकी हो गयी हूँ|

शोर थी मैं,
मौन/शांत हो गयी हूँ|

स्थूल थी मैं,
सूक्ष्म हो गयी हूँ|

प्रयास, कोशिश थी मैं,
सहज हो गयी हूँ|


गुरुदेव




पत्थर हूँ मैं, मुझे तराश दीजिये
मिटटी हूँ मैं, मुझे आकार दीजिये|

बरसों से तलाश जिसकी
जन्मों से इंतज़ार जिसका
एक अपना, एक आत्मज
एक उद्धारक, एक तारक|

संसार पाया हर जनम में
रिश्ते-नाते बने हर जनम में|
एक रिश्ता जिससे अनजान हूँ
जोड़ कर तार मुझे बाँध लिजिए|

शिष्य बना  अपना, मुझे कृतार्थ करें
कृपा दृष्टि बस एक बार कर दें|
कौन मुझसे मेरी पहचान कराएं
कौन मुझे परमात्मा तक पहुंचाएं?


स्व हित साधो पर हित साधो




नदी प्यासी नहीं भटकती है
दूसरों की प्यास बुझाती है

पेड़ भूखा नहीं मरता है
औरों की भूख मिटाता है

सावन प्यासा नहीं रहता
औरों कि प्यास बुझाता है

दीपक अंधेरों में नहीं भटकता है
औरों को राह दिखाता है 

मांझी अकेले पार नहीं उतरता है
औरों को भी पार उतारता है

महापुरुष अकेले नहीं उठते
औरों को भी  उठाते है

धर्म केवल अच्छे को ही नहीं 
पापी को भी शरण देता है

परमात्मा अकेले नहीं तरते
औरों को भी तारते है |


प्रभु कृपा ऐसी




प्रभु की कृपा ऐसी कि
अँधेरे उजाले में बदल जायें
दुःख सुखरूप बन जायें
दुर्बलताएं शक्ति बन जायें
कमजोरियां ताकत बन जाएँ
लघु महान बन जायें
हार जीत बन जायें
गुणहीन गुणवान बन जायें
इन्सान भगवान् बन जायें|


सहज जीवन




फूल हूँ मैं
सहज खिलना मेरा,
सहज मुस्कुराना मेरा
और सहज ही मुरझाना मेरा|
तप, त्याग मैं क्या जानूं?
प्रभु चरणों में अर्पण हो जाऊं|

पंछी हूँ मैं
सहज है गान मेरी
सहज ही उड़ान
सहज जीना-मरना मेरा|
ज्ञान ध्यान मैं क्या जानूं?
अनंत आकाश में बस विचरना चाहूँ |

नदिया हूँ मैं
सहज है बहना मेरा,
सहज मार्ग ढूंढना
और सहज गंतव्य तक पहुंचना मेरा|
साधना-आराधना मैं क्या जानूं?
प्रभु प्रीतम सागर में विलीन हो जाऊं|

बस यूं ही




चाहते अगर
तो मौन की गहराई में उतर सकते थे,
गीत मगर गुनगुना बैठे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो सफर पर निकल सकते थे, अकेले ही,
साथ की चाह में मगर इंतज़ार करते रहे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो कोरे कैनवास को कोरा ही छोड़ सकते थे,
आडी तिरछी रेखाएं सतरंगी खींच बैठे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो हकीकत से आँखें चार कर, जागे रह सकते थे
नैन मूँद, मदभरे ख्वाबों में मगर खोये रहे, बस यूं ही...


चाहते अगर
तो होश-ओ-हवास में अपने सदा रह सकते थे,
मदहोश हो मगर बहक उठे मस्ती में, बस यूं ही....

चाहते अगर
तो तुम तक जरूर पहुँच सकते थे, भगवन
बेमतलब ही संसार में भटकते रहे, बस यूं ही......


पंछी




मस्त गगन में उड़ रहा तू
आनंद सागर में तैर रहा तू|
आँखों में कोई ख्वाब नहीं
दिल में कोई तमन्ना नहीं|

कल्पना का सुनहरा जाल नहीं
यादों की कोई जंजीर नहीं|
अतीत का कोई बोझ नहीं
दुखों का कोई जहर नहीं|

कल से मुक्त आज में जीता तू
अभी का आनंद अमृत पीता तू
क्षण-क्षण का जीवन जीता और
दानें दो खा संतुष्ट हो जाता तू|

मिल जाए जहां शीतल छाँव
दो घडी सुस्ता लेता तू|
ऊँचाइयाँ आसमान की मापता
अनंत आकाश बस में करता तू|

हम मानव, प्रभु की उत्कृष्ट कृति
फिर भी जिंदगी से अनजान है,
जीना सहज हमें भी सीखा दें तू
पाठ जिंदगी का हमें भी  पढ़ा दे तू|


वृक्ष

गर्मियों की तपती दुपहरी हो
या सर्दियों की ठिठुरती रातें,
खुले आकाश के नीचे
सीना ताने खड़ी रहती है|

पानी का अभाव हो
या बाढ़ का अतिशय जल
खाना अपना आप बनाती है
मीठे फल हमें देती हैं|

झड जाए पुराने पत्ते तो
नए  कोंपल फिर उग आते है
हरी भरी हमेशा रहती है
शीतल छाँव हमें देती है|

फल-फूल छाँव सब पाते है
बदले में मगर क्या देते हम?
प्रकृति की देन क्या कम है
जो उसी पर अत्याचार करते हम?

अज्ञान, नासमझ पशु भी जब
पत्ते, फल खा संतुष्ट हो जाते है ,
फिर मानव होकर भी हम
इसे समूल क्यों नष्ट करते है?


अमृत बूँद पी लें




जो गुजर गया उसे गुजर जाने दें
अतीत को वर्तमान में न आने दें
भूल चुके जो, भूला ही रहने दें
यादों को लौट कर न आने दें

जो आया नहीं उसकी चिंता न कर
भविष्य के रंगों की, न कल्पना कर
अनदेखे कल में न उड़ानें भर
कल्पित भविष्य में वक़्त न जाया  कर

तेरी पूँजी, तेरी दौलत है आज में
तेरा सुख, तेरी शान्ति है आज में
आज को, वर्तमान को सही जी लें
पल पल के अमृत बूँद को पी लें

यही कहता धर्म, यही कहता योग
जाग्रत हो, सचेत हो हर क्षण में
अतीत गया, भविष्य आये न आये
वर्तमान तो तेरा तेरे हाथ में हैं|


ढाई अक्षर प्रेम के




अनपढ़ भी जो पढ़ सकें
अँधा भी जो देख सके,
ढाई अक्षर प्रेम के|

मूक पशु भी  जो समझ सकें
मनुष्य को जो मानव बनाये,
ढाई अक्षर प्रेम के|

लाल के शीश दुआ बन फले
भाइयों की कलाई पर जो बंधे,
ढाई अक्षर प्रेम के|

प्रेमिका के दिल में धडके
सुहागिन की मांग में जो सजे,
ढाई अक्षर प्रेम के|

बांटने से जो बढ़ता जाये
देने से जो मिलता जाये, 
ढाई अक्षर प्रेम के|

शाश्त्रों का महापंडित
योगविद्या  का ज्ञानी
झुके जिसके सामने,
ढाई अक्षर प्रेम के|

दुश्मन को पछाड़ना हो
भावना की रणभूमि में
एक ही शस्त्र काम आये, 
ढाई अक्षर प्रेम के|

सारे धर्मों का सार है जो
संत महात्मा की वाणी में जो,
ढाई अक्षर प्रेम के

प्रभु के द्वार जो पहुंचा दे
उस प्रीतम से जो मिला दें  
ढाई अक्षर प्रेम के|


अब हमें भरमाओं न




मुद्दत लगे दिल को समझाने में
पत्थर की नगरी में जीना सिखाने में,
फूलों का हसीं नजारा दिखा, अब हमें भरमाओं न|

बरसों लग गए, मोम से जिस्म को
पत्थर की खामोश मूरत में ढलने में,
स्नेहिल नजरों से अब इसे पिघलाने की कोशिश करो न|

सावन भादों से बरसते रहे ये नैन
तब कहीं जाकर,दिल से अतीत के दाग छूटे,
अब याद हमें किसी लम्हें की दिलाओ न|

लड़खड़ाते क़दमों न, बड़ी मुश्किल से
सहारे की बैसाखियाँ छोड़ चलना सीखा है,
हाथ अपना दें, दुबारा इन्हें कमजोर बनाओ न|

रिश्तों के बोझ तले, कहीं दब गया मेरा अस्तित्व
सब कुछ खोकर ही आज यह आत्मधन पाया है,
बेड़ियाँ सब टूट गई, अब रिश्तों की दुहाई न दो|


जिंदगी ने सब सिखा दिया




न अपने रहे, न सपने रहे
अब छलने  के लिए
'स्व' में हम स्थिर हो गए|

न राह कोई, न मंजिल कोई
अब क़दमों को उकसाए
मुकाम खुद मंजिल हो गए|

न सूरज की, न चाँद की
अब मैं बाट निहारूं
मैं तो स्वयं 'दीया' बन गयी|

न सपना कोई, न ख्वाब कोई
अब नैनों को भरमाये
यथार्थ की अब दृष्टि  हो गई|

न साथी की, न हमसफ़र की
अब कोई तमन्ना है
'आत्मसाथ' जो पा लिया हमने|

न गुरु  की, न ज्ञान की अपेक्षा
कुछ सीखने के लिए
जिंदगी न सब सिखा दिया हमें|




ख़ामोशी मेरी



मौन के गीत सुनाती
मन मेरा बहलाती , ख़ामोशी मेरी
मुश्किल बातें सुलझाती
आसान हल सुझाती, ख़ामोशी मेरी|

उलझे रिश्ते संवारती
रूठे अपनों को मनाती, ख़ामोशी मेरी|

प्रेम, दोस्ती सहज बढ़ाती
सबको सादगी  से अपनाती, ख़ामोशी मेरी|

दृष्टि  निर्मल करती
सोच सुलझी करती, ख़ामोशी मेरी|

'स्व' में गहराती जाती
मुझसे मेरा परिचय कराती, ख़ामोशी मेरी|

मीठे बोलों से मीठी
मधुर गीतों से मधुर, ख़ामोशी मेरी|


मैं से मैं तक




पहले भी अकेली थी मैं
और आज भी अकेली हूँ,
पर तब मैं तन्हाह थी
और आज  एकाकी हूँ|

पहले भी ख़ामोशी थी
और आज भी ख़ामोशी हैं,
पर तब ये चुप्पी थी
और आज ये मौन है|

जितनी करीब जिंदगी तब थी
आज भी उतनी करीब है,
पर तब  एक पहेली थी
और आज  सहेली है|

तब भी मैं 'मैं' थी
और आज भी मैं 'मैं' हूँ,
पर तब अहंकार का मैं था
और आज आत्मबोध का मैं|


किसका इंतज़ार है?




वो किस बहार का इंतज़ार है,
जो जिंदगी को महका दें?
ये जो बहार छाई है,
इसकी खुशबू में कमी है कोई?
ये जो फूल खिले है,
इनकी रंगत  में कमी है कोई?

वो किस सवेरे का इंतज़ार  है,
जो जिंदगी को रोशन कर दें?
ये जो आज सूर्य उदय हुआ है,
इसकी रौशनी में कमी है कोई?
सारा जग जो जगमगा उठा है,
इसकी चमक में कमी है कोई?

वो किस सावन का इंतज़ार है,
जो तन-मन शीतल कर दें?,
ये जो मतवाला मौसम छाया है,
इसकी मस्ती में कमी है कोई?
हर नजारा  जो भीगा, भीगा सा है,
इसकी ठंडक में कमी है कोई?

वो किस भविष्य का इंतज़ार है,
जो जिंदगी हमारी संवार दें?
ये जो चौबीस घंटों का दिन मिला है,
ये खजाना क्या कम है?
अनमोल पलों के जो मोती मिले,
इनकी कीमत क्या कम है?

मेरी तो बहार भी आज है,
और मेरा तो सवेरा भी आज है|
मेरा तो सावन  भी आज है,
और मेरा तो भविष्य भी आज है|


तन-मन के परे

 तन में हूँ मैं,
 मन में हूँ मैं,
 तन-मन में केन्द्रित हूँ मैं|
तन के एहसास में,
मन के भाव में,
तन्मयता है, एकरसता है|
 पर तन से हटना है,
मन से सरकना है
 परे इन दोनों के होना है|
असली केंद्र को ढूंढना है
मूल तत्त्व को पहचानना है
आत्म में रमना है|  

आत्म- रमणता




हर इच्छा की नदी बह
अन्तः
आत्म-रमणता के महासागर में 
विलुप्त हो जाए|
हर कर्म, अच्छा-बूरा
अन्तः
आत्म-ज्ञान की प्रचंड ज्वाला में
जल, भस्म हो जाए|

भव-भ्रमण की राहें
अन्तः
आत्म साक्षात्कार  की मंजिल में 
विश्राम पा जाए| 


अदृश्य का दर्शन




रात और दिन, चौबीस घंटे
दृश्य को ही देखते रहोगे
तो अदृश्य का दर्शन करोगे कैसे?

कभी बोल के शोर तो कभी,
मधुर गीतों की धुन, सुनते ही रहोगे
तो मौन का श्रवण करोगे कैसे?

कभी अच्छे तो कभी बुरे,
आठों पहर कर्म करते ही रहोगे
तो अकर्म का अभ्यास करोगे कैसे?

कभी राग से, कभी द्वेष से
संसार से बंधे ही रहोगे
तो संसार के पार उतरोगे कैसे?


Sunday, July 24, 2011

नये चोंगे मिलते रहेंगे

डगमगाई है कश्ती,
और डूब भी गए हम|
फिर भी मिटते नहीं हम|
किनारे न पहुंचे जब तक,
कश्तियाँ नई मिलती जायेंगी|

लडखडाये है कदम,
घायल हुए, और मर भी गए हम|
फिर भी ख़तम न हुआ सफ़र|
मंजिल न पा लें जब तक,
नए तन के चोले मिलते रहेंगें|

गलतियाँ बहुत किये,
अनुतीर्ण भी हो गए हम|
पर इम्तिहान न ख़त्म हुआ|
उत्तीर्ण न हो जाए जब तक,
नए पर्चे मिलते ही जायेंगें|



साथ तुम रहना



 अनजाना ये सफ़र ज़िन्दगी का
साथ तुम रहना, पहचाने प्रभु|

हो सदा, राहें मेरी रौशन
ये दुआ नहीं मांगती,
पर जब कभी अँधेरा छाये 
हाथों में मेरे तेरा हाथ रहे|

रहे सदा बहार का मौसम
ये तमन्ना भी नहीं, प्रभु
पर जब खिज़ा का मौसम छाये
पुनः नए सृजन का विस्वास रहे|

सिर्फ सुख का मिले वरदान
ऐसी खुदगर्जी नहीं, भगवन
जब भी मगर दुःख आये
मन समता भाव में रहे|

अनुकूल हो हर परिस्थिति
ये भी इल्तजा नहीं, प्रभु,
जब प्रतिकूलता कभी आये
तो मनस्तिथि स्वस्थ बनी रहे|


हर पल अनमोल

हर लम्हा ज़िन्दगी का
है खूबसूरत,अनमोल,
फिर कुछ ही लम्हें
हम मानते ख़ास क्यों?
कितने पलों की क़ुरबानी पर
बनते ये कुछ पल ख़ास|

हर दिन जिंदगी का
एक नायाब तोहफा है,
फिर कुछ ही दिन
हम मानते यादगार क्यों?
कितने दिनों के इंतज़ार ने
किया वो एक दिन साकार|

आज के, अभी के पल में
क्या ख़ूबसूरती की कमी है?

जो ये नादान दिल
अतीत के मधुर पलों का
बार बार रसपान करता,
या फिर भविष्य की
सुनहरी ख्वाबों के नगर 
के सैर सपाटे करने निकल जाता|

आज का ये पल, ये क्षण 
गीली मिटटी है हमारे हाथों में,
जो चाहे इसे हम आकार दे दें
यही पल हमारी कर्म भूमि है|  


खेत तैयार है



प्रभु नाम जप के हल से
खेत जोया
तमन्ना, कामना, इच्छा का
हर कंकड़, पत्थर निकाल फेंका,
श्रद्धा का बीज भी बो दिया
आत्मा की खेत अब तैयार है
बस, प्रभु कृपा की
अब सावन  बरस जाए|


ऐ जिंदगी

ऐ जिंदगी,
तुझे खूबसूरत करार देनें को मुझे,
किसी नाम की जरूरत नहीं|

तुझे भरपूर मानने को मुझे,
किसी वस्तु, पदार्थ की जरूरत नहीं|

तुझे अपना समझने को मुझे,
रिश्तों  की, अपनों की जरूरत नहीं|

कोई हो न हो, कुछ हो न हो
तू अपने आप में खूबसूरत है|

खुदा की बख्शी यह जिंदगी
बिना किसी आलंबन, सहज ही पूर्ण  है|