Sunday, August 28, 2011

किसका इंतज़ार है?




वो किस बहार का इंतज़ार है,
जो जिंदगी को महका दें?
ये जो बहार छाई है,
इसकी खुशबू में कमी है कोई?
ये जो फूल खिले है,
इनकी रंगत  में कमी है कोई?

वो किस सवेरे का इंतज़ार  है,
जो जिंदगी को रोशन कर दें?
ये जो आज सूर्य उदय हुआ है,
इसकी रौशनी में कमी है कोई?
सारा जग जो जगमगा उठा है,
इसकी चमक में कमी है कोई?

वो किस सावन का इंतज़ार है,
जो तन-मन शीतल कर दें?,
ये जो मतवाला मौसम छाया है,
इसकी मस्ती में कमी है कोई?
हर नजारा  जो भीगा, भीगा सा है,
इसकी ठंडक में कमी है कोई?

वो किस भविष्य का इंतज़ार है,
जो जिंदगी हमारी संवार दें?
ये जो चौबीस घंटों का दिन मिला है,
ये खजाना क्या कम है?
अनमोल पलों के जो मोती मिले,
इनकी कीमत क्या कम है?

मेरी तो बहार भी आज है,
और मेरा तो सवेरा भी आज है|
मेरा तो सावन  भी आज है,
और मेरा तो भविष्य भी आज है|


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