रात और दिन, चौबीस घंटे
दृश्य को ही देखते रहोगे
तो अदृश्य का दर्शन करोगे कैसे?
कभी बोल के शोर तो कभी,
मधुर गीतों की धुन, सुनते ही रहोगे
तो मौन का श्रवण करोगे कैसे?
कभी अच्छे तो कभी बुरे,
आठों पहर कर्म करते ही रहोगे
तो अकर्म का अभ्यास करोगे कैसे?
कभी राग से, कभी द्वेष से
संसार से बंधे ही रहोगे
तो संसार के पार उतरोगे कैसे?
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