Sunday, August 28, 2011

बस यूं ही




चाहते अगर
तो मौन की गहराई में उतर सकते थे,
गीत मगर गुनगुना बैठे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो सफर पर निकल सकते थे, अकेले ही,
साथ की चाह में मगर इंतज़ार करते रहे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो कोरे कैनवास को कोरा ही छोड़ सकते थे,
आडी तिरछी रेखाएं सतरंगी खींच बैठे, बस यूं ही...

चाहते अगर
तो हकीकत से आँखें चार कर, जागे रह सकते थे
नैन मूँद, मदभरे ख्वाबों में मगर खोये रहे, बस यूं ही...


चाहते अगर
तो होश-ओ-हवास में अपने सदा रह सकते थे,
मदहोश हो मगर बहक उठे मस्ती में, बस यूं ही....

चाहते अगर
तो तुम तक जरूर पहुँच सकते थे, भगवन
बेमतलब ही संसार में भटकते रहे, बस यूं ही......


No comments:

Post a Comment