Kala
Sunday, August 28, 2011
आत्म- रमणता
हर इच्छा की नदी बह
अन्तः
आत्म-रमणता के महासागर में
विलुप्त हो जाए|
हर कर्म, अच्छा-बूरा
अन्तः
आत्म-ज्ञान की प्रचंड ज्वाला में
जल, भस्म हो जाए|
भव-भ्रमण की राहें
अन्तः
आत्म साक्षात्कार की मंजिल में
विश्राम पा जाए|
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment