Sunday, August 28, 2011

ढाई अक्षर प्रेम के




अनपढ़ भी जो पढ़ सकें
अँधा भी जो देख सके,
ढाई अक्षर प्रेम के|

मूक पशु भी  जो समझ सकें
मनुष्य को जो मानव बनाये,
ढाई अक्षर प्रेम के|

लाल के शीश दुआ बन फले
भाइयों की कलाई पर जो बंधे,
ढाई अक्षर प्रेम के|

प्रेमिका के दिल में धडके
सुहागिन की मांग में जो सजे,
ढाई अक्षर प्रेम के|

बांटने से जो बढ़ता जाये
देने से जो मिलता जाये, 
ढाई अक्षर प्रेम के|

शाश्त्रों का महापंडित
योगविद्या  का ज्ञानी
झुके जिसके सामने,
ढाई अक्षर प्रेम के|

दुश्मन को पछाड़ना हो
भावना की रणभूमि में
एक ही शस्त्र काम आये, 
ढाई अक्षर प्रेम के|

सारे धर्मों का सार है जो
संत महात्मा की वाणी में जो,
ढाई अक्षर प्रेम के

प्रभु के द्वार जो पहुंचा दे
उस प्रीतम से जो मिला दें  
ढाई अक्षर प्रेम के|


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