न अपने रहे, न सपने रहे
अब छलने के लिए
'स्व' में हम स्थिर हो गए|
न राह कोई, न मंजिल कोई
अब क़दमों को उकसाए
मुकाम खुद मंजिल हो गए|
न सूरज की, न चाँद की
अब मैं बाट निहारूं
मैं तो स्वयं 'दीया' बन गयी|
न सपना कोई, न ख्वाब कोई
अब नैनों को भरमाये
यथार्थ की अब दृष्टि हो गई|
न साथी की, न हमसफ़र की
अब कोई तमन्ना है
'आत्मसाथ' जो पा लिया हमने|
न गुरु की, न ज्ञान की अपेक्षा
कुछ सीखने के लिए
जिंदगी न सब सिखा दिया हमें|
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