Sunday, July 24, 2011

साथ तुम रहना



 अनजाना ये सफ़र ज़िन्दगी का
साथ तुम रहना, पहचाने प्रभु|

हो सदा, राहें मेरी रौशन
ये दुआ नहीं मांगती,
पर जब कभी अँधेरा छाये 
हाथों में मेरे तेरा हाथ रहे|

रहे सदा बहार का मौसम
ये तमन्ना भी नहीं, प्रभु
पर जब खिज़ा का मौसम छाये
पुनः नए सृजन का विस्वास रहे|

सिर्फ सुख का मिले वरदान
ऐसी खुदगर्जी नहीं, भगवन
जब भी मगर दुःख आये
मन समता भाव में रहे|

अनुकूल हो हर परिस्थिति
ये भी इल्तजा नहीं, प्रभु,
जब प्रतिकूलता कभी आये
तो मनस्तिथि स्वस्थ बनी रहे|


2 comments:

  1. ओह! खूबसूरत अभिव्यक्ति.
    अद्भूत पावन चाहत और समर्पण की भावना
    से ओतप्रोत आपकी प्रस्तुतियों को मेरा सादर नमन.

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  2. bahut, bahut dhanyavaad rakeshji....

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