Sunday, July 24, 2011

नये चोंगे मिलते रहेंगे

डगमगाई है कश्ती,
और डूब भी गए हम|
फिर भी मिटते नहीं हम|
किनारे न पहुंचे जब तक,
कश्तियाँ नई मिलती जायेंगी|

लडखडाये है कदम,
घायल हुए, और मर भी गए हम|
फिर भी ख़तम न हुआ सफ़र|
मंजिल न पा लें जब तक,
नए तन के चोले मिलते रहेंगें|

गलतियाँ बहुत किये,
अनुतीर्ण भी हो गए हम|
पर इम्तिहान न ख़त्म हुआ|
उत्तीर्ण न हो जाए जब तक,
नए पर्चे मिलते ही जायेंगें|



3 comments:

  1. शशि जी ,

    आपकी सारी रचनाएँ तो नहीं पढ़ पायी हूँ ..कुछ पढ़ीं आज ..मुग्ध हो गयी आपके लेखन पर ..

    बस यूँ ही बहुत पसंद आई और आज की सारी रचनाये बेहतरीन हैं ...चोले बदलने वाली भी और आत्मरमणता वाली भी ..

    आप मेरे ब्लॉग पर आयीं ..आभार ..


    एक सुझाव ---


    कृपया टिप्पणी बॉक्स से वर्ड वेरिफिकेशन हटा लें ...टिप्पणीकर्ता को सरलता होगी ...

    वर्ड वेरिफिकेशन हटाने के लिए
    डैशबोर्ड > सेटिंग्स > कमेंट्स > वर्ड वेरिफिकेशन को नो करें ..सेव करें ..बस हो गया .

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  2. असली केंद्र को ढूंढना है
    मूल तत्त्व को पहचानना है
    आत्म में रमना है|

    आपकी आत्म-ज्ञान से पूर्ण सुन्दर
    अभिव्यक्तियों की प्रशंसा करने के लिए
    शब्द नहीं हैं मेरे पास.
    आपके हृदय के शुभ स्पंदन
    शुचिता का संचार कर रहें हैं
    अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार.

    मेरे ब्लॉग पर आपका हार्दिक स्वागत है.
    आपके विशुद्ध ज्ञान से अभिभूत होने का मन है.
    कृपया,अनुग्रहित कीजियेगा.

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  3. आज 25- 07- 2011 को आपकी पोस्ट की चर्चा यहाँ भी है .....


    ...आज के कुछ खास चिट्ठे ...आपकी नज़र .तेताला पर
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