पत्थर हूँ मैं, मुझे तराश दीजिये
मिटटी हूँ मैं, मुझे आकार दीजिये|
बरसों से तलाश जिसकी
जन्मों से इंतज़ार जिसका
एक अपना, एक आत्मज
एक उद्धारक, एक तारक|
संसार पाया हर जनम में
रिश्ते-नाते बने हर जनम में|
एक रिश्ता जिससे अनजान हूँ
जोड़ कर तार मुझे बाँध लिजिए|
शिष्य बना अपना, मुझे कृतार्थ करें
कृपा दृष्टि बस एक बार कर दें|
कौन मुझसे मेरी पहचान कराएं
कौन मुझे परमात्मा तक पहुंचाएं?
अनुपम उदगार.
ReplyDeleteसच्ची अभिव्यक्ति.
शिष्य बनने की उत्कट चाहत हो
तो भगवान को गुरू रूप में दर्शन देने ही होंगे.
अखण्ड मण्डलाकारम् व्याप्तं येन चराचरम्
तत्पदं दर्शितं येन तस्मै श्री गुरवे नम:
आपकी सुन्दर प्रस्तुति के लिए आभार.